Monday 26 May 2014

AE-JAAN AB TOH MAAN JA.....

ऐ जान अब तो  मान जा कि कंधो पे हुँ मैं,
आज रस्सियों से बंधी हुँ मैं,
आस-पास  उदासी का मंज़र सजा है,
कैसे कहूँ इन सबको कि तू ही इसकी वजह है,
छोड़ कर चले जाना तेरा ,
बर्दाश्त न कर पाये हम,
हो गए मजबूर और सोचा,
कि क्यों न मौत के आगोश में सो जाए हम,
ये रातों को रोने का सिलसिला ख़त्म जो करना था,
एक न एक दिन तो हमें भी मरना था,
तो सोचा क्यों न वो शुभ घड़ी आज हे ले आएं,
जाते-जाते तुमको भी ये ख़ुशी दे जाएँ,
की हमारा चेहरा तुम्हें तंग न कर पायेगा,
मेरा जनाज़ा तुम्हें इतनी खुशियाँ दे जाएगा,
ज्यादा कुछ नही एक आखरी बार एहसान कर देना,
मुझे जलाते वक़्त तुम प्यार से मुस्कुरा लेना,
मरना मेरा सफल हुआ ये सोचकर खुश हो जाएंगे ,
मौत के बाद तो सुकून की नींद सो पाएंगे,
देखो अब ले आये हैं लोग मुझे कंधे पे उठाकर ,
आज तो वो भी शामिल हैं,
जिन्होने कभी हाल तक ना पूछा था पास बिठाकर,
बस कुछ हे पलों में ये आखरी रस्म भी पूरी हो जायेगी,
तुझे बेपनाह चाहने वाली हमेशा के लिए खो जायेगी,
मुझे जलते देख आज तो ये शमशान भी रो रहा है,
की पहला जनाज़ा आया है यहाँ,
जिसको कफ़न भी सुकून का नसीब नहीं हो रहा है,
कफ़न भी सुकून का नसीब नहीं हो रहा है.………………………

-सिमरन कौर 

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