Monday 6 April 2015

POETRY- MERA JAHAN EK MUTTHI ASMAAN...

है ज़रूरत नही चाँद  की मुझे,
पाने को अब सितारे ही काफी हैं,
है ज़रूरत नही उस चांदनी की मुझे,
पाने   को बस एक चमक ही काफी है,
ज़रूरत है तो बस एक मुट्ठी आसमान,
सिमटने को जिसके तले,
मेरा जहान काफी है,
है जिन तूफानों से घिरी मेरी कश्ती,
डुबाने को अब मुझे,
 वो लहर काफी है,
ज़िन्दगी के समंदर  में अच्छी तैराक हूँ मैं,
नौका तक पहुँचने में,
 अब बस खुदा की मैहर काफी है............
अब बस खुदा की मैहर काफी है.............


- सिमरन कौर 

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