Saturday, 15 August 2015

Suno Kahaani Veeron Ki...

एक अमर कहानी वीरों की,
आज हमे सुनानी है,
दी थी जिन वीरों ने कुर्बानी,
वो आज़ादी याद दिलानी है,
लहू बहाकर गैरों ने,
बहुत करायी गुलामी है
आखिर जाना पड़ा ये भारत छोड़ ,
आज़ाद भारत की यही कहानी है,
जिन माओं ने वारे अपने बेटे,
उन माओं को भी सलामी है,
आज़ाद हुआ था भारत जिस दिन,
ये १५ अगस्त की कहानी है,
तीन रंगों का मेल तिरंगा,
फहराकर आज़ादी मनानी है,
आओ करे शत-शत नमन वीरों को,
वो स्वतंत्रता सेनानी हैं,
किया खुद को वतन के हवाले,
वो वीर बलिदानी हैं  ……
वो वीर बलिदानी हैं  ……

-सिमरन कौर

Monday, 6 April 2015

POETRY- MERA JAHAN EK MUTTHI ASMAAN...

है ज़रूरत नही चाँद  की मुझे,
पाने को अब सितारे ही काफी हैं,
है ज़रूरत नही उस चांदनी की मुझे,
पाने   को बस एक चमक ही काफी है,
ज़रूरत है तो बस एक मुट्ठी आसमान,
सिमटने को जिसके तले,
मेरा जहान काफी है,
है जिन तूफानों से घिरी मेरी कश्ती,
डुबाने को अब मुझे,
 वो लहर काफी है,
ज़िन्दगी के समंदर  में अच्छी तैराक हूँ मैं,
नौका तक पहुँचने में,
 अब बस खुदा की मैहर काफी है............
अब बस खुदा की मैहर काफी है.............


- सिमरन कौर 

Friday, 2 January 2015

आओ नए साल में कुछ नयी बात करते हैं......

आओ नए साल में कुछ नयी बात करते  हैं,
कुछ ऐसे नये साल की शुरुवात  करते हैं,
की  छोड़ कर द्धेष और  बैर की भाषा ,
इस प्यार की भाषा से ही प्यार  करते हैं,
हर दिल में  भरते हैं खुशियों की उमंग ,
आओ कुछ ऐसे अच्छे काम से ही ,
नये साल की शुरुवात  करते हैं,
देकर 2014 को अलविदा का पैगाम ,
स्वागत का फरमान देकर ,
आओ नए साल को सलाम करते हैं,
आओ 2015 को सलाम करते है........
आओ 2015 को सलाम करते है........

HAPPY NEW YEAR......

-सिमरन कौर 

Wednesday, 22 October 2014

HAPPY DIWALI

आओ मिलकर दीपक जलायें ,
की देखो आज दिवाली आई है,
कितने दीपकों की लौ से,
हर नगर जगमग रौशनी छायी है,
कहीं  दीपकों की जलती लौ क आगे,
कहीं हार अंधकार ने मनाई है,
कहीं पटाखों की धूम है मची,
तो कहीं एक माँ अपने बच्चों क लिए ,
मिठाई लायी है,
जलाते रहना यूँही एक दीपक उजियारे का,
अंधियारे को मिटाने,
शुभ-दीपावली आई है,
देखो जग को रोशन करने,
ये साल फिर दीवाली आई है.......
शुभ-दीपावली आई है……………


-सिमरन कौर 

Thursday, 25 September 2014

ZINDAGI KA SEEKHA, LAFZON MEIN UTARA

खुशियों को खोकर मैंने,
मुस्कुराना सीखा है,
अश्कों को पीकर मैंने,
ग़म भुलाना सीखा है,
कलम और स्याही के सहारे,
दर्द कागज़ पर बहाना सीखा है,
नहीं ये ज़िन्दगी का सफर आसान,
बिना मांझी कश्ती को,
पार लगाना सीखा है,
हारूंगी नहीं अब ज़िन्दगी के आगे,
लाख ठोकरे खाकर भी,
खुद को सम्भालना सीखा है,
दे दे खुदा मुझे ज़ख्म जितने भी,
दर पे खड़े होकर उसके,
मुस्कान को मरहम बनाना सीखा है,
कब तक नही देगा वो खुदा कोई ख़ुशी मुझे,
आखिर हमने भी उसकी हर रज़ा को,
दिल से अपनाना सीखा है,
लाख तकलीफों के साये में रहे हो हम,
गीत मुस्कुराहट का सदा हमने गुनगुनाना सीखा है,
यूँ ही हर ग़म को मिटाना सीखा है................... 
यूँ ही हर ग़म को मिटाना सीखा है...................  
मिटाना सीखा है................... 


-सिमरन कौर 

Thursday, 14 August 2014

POEM ON INDEPENDENCE DAY...

सारे जहान से अच्छा ,
जब हिन्दुस्तान हमारा होगा,
न शहीद उस सरहद पर,
कोई सैनिक दुबारा होगा,
आओ हम कुछ ऐसा ही ,
हिन्दुस्तान बनाते हैं,
आज़ादी की हम एक,
अमर-ज्योति जलाते  हैं,
जात-पात की इस देहलीज़ को हम,
अब जड़ से मिटाते हैं,
अरे! लड़ाई झगड़ों से क्या पाओगे,
ज़िन्दगी आज मिली है,
कल ख़त्म हो जायेगी,
क्यों न ये सोच हम,
प्यार का दामन फैलाते हैं,
गर एक हो जाए,
हिन्दू , मुस्लिम, सिख, ईसाई ,
आओ हम एकता का तिरंगा लहराते हैं,
ना होना पड़े शहीद,
फिर किसी सैनिक को दुबारा,
ये जंग का सिलसिला ,
अब जड़ से मिटाते हैं,
आओ मिलकर ऐसा हिन्दुस्तान बनाते हैं,
की अमन और शान्ति की मिसाल ,
अपने हिन्दुस्तान को बनाते हैं,
स्वतंत्रता  दिवस के इस अवसर पर,
हर बुराई का खात्मा कर,
नया हिन्दुस्तान सजाते हैं,
ऐसा तिरंगा लहराते हैं.............
ऐसा तिरंगा लहराते हैं.............
सारे जहान से अच्छा ,
तब  हिन्दुस्तान हमारा होगा,
जब अमन और शान्ति की मिसाल ,
केवल हिन्दुस्तान हमारा होगा ………
वो हिन्दुस्तान हमारा होगा.......
जब  शहीद उस सरहद पर,
न कोई सैनिक दुबारा होगा……
न कोई सैनिक दुबारा होगा……

-सिमरन कौर 

Friday, 8 August 2014

POEM ON RAKSHABANDHAN

आज बंधवाने को राखी कलाई पे,
वो भाई सरहद से भी जाएंगे,
लौट के घर को अपने,
इंतज़ार में अपनी बहना को पाएंगे,
वो हाथ में लिए थाली जब,
दौड़ के आएगी,
माथे पे टीका ,
आरती उतार  उस भाई को,
मीठा खिलायेगी,
वो धागा रक्षा का,
जब उसकी कलाई पर पेहनाएगी ,
तोहफे में अपने भाई से,
ढेर सारा प्यार पाएगी,
 सोचो कभी उस बहन की ख़ुशी,
जब उन २४ घंटों में वो हर पल,
अपने भाई संग बितायेगी,
सोचो कितने खुशनसीब हैं हम,
जो ये राखी हमारी सुनी ना रह पाएगी,
मनाने को आज बंधन रक्षा का,
हर भाई की कलाई भर जाएगी,
ये त्यौहार ही  ऐसा है,
जो भाई बहन को एक रिश्ते में जोड़ता है,
बदले में बहन का दिल बस यही बोलता है,
की बंधन रक्षा का तुम सदा निभाना,
ये लाज राखी की तुम सदा बचाना …………
ये लाज राखी की तुम सदा बचाना …………


- सिमरन कौर 

Sunday, 27 July 2014

JALTA DEEPAK - JALTI CHAHAT

जलाऊ जो दीपक उसकी चाह में,
तो ये हवा भी उसे बुझा देती है,
हवा भी हंसकर चाहत पे मेरी,
अक्सर मुझे रुला देती है,
मुद्दत हो गयी जले जिस लौ को,
बचाऊ जो हवा से,
तो हाथ मेरा जला  देती है,
जलाऊ जो दीपक उसकी चाह में,
तो ये हवा भी उसे बुझा देती है …… 

है नही ये कोई दीपक ख़ाकसारी ,
है कहीं जुड़ी इससे चाहत हमारी,
समझने वाले इसे ,
खाकसार समझ बैठे,
किसी क्या पता इस दीपक पर ,
हम अपने जलते दिल का ,
हर हाल वार बैठे,
जिसकी चाहत में लड़ते रहे हवा से हम,
इस जंग में हम खुद को मार बैठे,
चाहते तो थे ये सिलसिला सदियों तक,
की जब जब बुझाए ये हवा इस लौ को,
ये जल खुद ही  बार बार बैठे,
इतना ना कर घमंड ऐ हवा,
की एक दिन तू इस खाकसार दीपक से ही हार बैठे ……………
इस खाकसार दीपक से ही हार बैठे ………………
 

-सिमरन कौर

Thursday, 24 July 2014

SOCHO KABHI EK LAMHA AISA

सूनी राह हो,
हाथ तुम्हारा हो,
सन्नाटे की खूबसूरती में,
गूंजता प्यार हमारा हो,
सोचो कभी एक लम्हा ऐसा,
चाहत के सफर पर,
स्वागत हमारा हो,
सूनी राह हो,
और हाथ तुम्हारा हो..............

नीले आसमान के तले,
एक बादल हमारा  हो,
लिखे जो नाम उसपर,
मिटना ना उसको गवारा हो,
गर मिट  भी जाए हवा से बादल,
आसमान में फ़ैल जाए,
ऐसा प्यार हमारा हो,
सोचो कभी एक लम्हा ऐसा,
सूनी राह हो,
और हाथ तुम्हारा हो...........

सुनेहरा  सफर हो,
हर कदम साथ तुम्हारा हो,
हर फूल भी हो गवाह हमारा,
अटूट साथ हमारा हो,
गर कभी ख़त्म हो जाये राह कहीं,
दुआ मेरी बस मेरे मुक़ददर में,
हर जनम साथ हमारा हो,
सिर्फ नाम तुम्हारा हो,
सोचो कभी एक लम्हा ऐसा,
न सूनी कोई राह रहे,
गर सदा मेरे हाथ में,
हाथ तुम्हारा हो.……………
ज़िंदा रहे हर कदम कदम पर,
ऐसा प्यार हमारा हो..........
ऐसा प्यार हमारा हो..........


- सिमरन कौर 

Friday, 18 July 2014

SAY NO TO CHILD LABOUR & CHILD ABUSE

उठता हूँ मैं पहली किरण से,
स्कूल के लिए नहीं ,
मैं काम पर जाता हूँ,
हूँ मैं नौकर एक मामूली से ढाबे का,
जहाँ गालियाँ अक्सर अपने मालिक से  खाता हूँ,
वो दस  मिनट ढाबे तक की दूरी,
बहुत मुश्किल से काट पाटा हूँ,
जब देखता हूँ सुबह बच्चों को बस्ता टांगे,
तो नसीब पे अपने मैं अक्सर रो जाता हूँ,
होनी चाहिए जिन हाथों में रंग बिरंगी किताबें ,
उन हाथों में हमेशा मैं एक पोछा ही पाता  हूँ,
खेल-कूद से भरा होता है जिन बच्चों का बचपन,
उस  बचपन को ख्वाबों में भी,
मैं खोया सा पाता हूँ,
मिलते हैं मुझको जो टिप के पैसे,
 दे सकू एक गुब्बारा खुद को,
मैं मन  को मारकर अपने,
वो पैसे बचाता  हूँ,
कभी  होती है ताप्ती गर्मी,
तो कभी कड़कड़ाती ठण्ड,
देर से पहुंचने पर ,
मैं अक्सर मालिक से मार भी खाता हूँ,
इस बचपन में भी कमाने को चार पैसे,
मैं हर अन्याय को हॅंस कर सह जाता हूँ,
उठता हूँ मैं पहली किरण से,
स्कूल के लिए नहीं,
मैं रोज काम पर जाता हूँ,
बचपन को अपने मैं,
आग में झोंक कर,
मैं पैसे कमाता हूँ,
क्यूंकि मैं काम पर जाता हूँ .............
क्यूंकि मैं काम पर जाता हूँ .............


- सिमरन कौर 

Monday, 26 May 2014

AE-JAAN AB TOH MAAN JA.....

ऐ जान अब तो  मान जा कि कंधो पे हुँ मैं,
आज रस्सियों से बंधी हुँ मैं,
आस-पास  उदासी का मंज़र सजा है,
कैसे कहूँ इन सबको कि तू ही इसकी वजह है,
छोड़ कर चले जाना तेरा ,
बर्दाश्त न कर पाये हम,
हो गए मजबूर और सोचा,
कि क्यों न मौत के आगोश में सो जाए हम,
ये रातों को रोने का सिलसिला ख़त्म जो करना था,
एक न एक दिन तो हमें भी मरना था,
तो सोचा क्यों न वो शुभ घड़ी आज हे ले आएं,
जाते-जाते तुमको भी ये ख़ुशी दे जाएँ,
की हमारा चेहरा तुम्हें तंग न कर पायेगा,
मेरा जनाज़ा तुम्हें इतनी खुशियाँ दे जाएगा,
ज्यादा कुछ नही एक आखरी बार एहसान कर देना,
मुझे जलाते वक़्त तुम प्यार से मुस्कुरा लेना,
मरना मेरा सफल हुआ ये सोचकर खुश हो जाएंगे ,
मौत के बाद तो सुकून की नींद सो पाएंगे,
देखो अब ले आये हैं लोग मुझे कंधे पे उठाकर ,
आज तो वो भी शामिल हैं,
जिन्होने कभी हाल तक ना पूछा था पास बिठाकर,
बस कुछ हे पलों में ये आखरी रस्म भी पूरी हो जायेगी,
तुझे बेपनाह चाहने वाली हमेशा के लिए खो जायेगी,
मुझे जलते देख आज तो ये शमशान भी रो रहा है,
की पहला जनाज़ा आया है यहाँ,
जिसको कफ़न भी सुकून का नसीब नहीं हो रहा है,
कफ़न भी सुकून का नसीब नहीं हो रहा है.………………………

-सिमरन कौर 

Thursday, 15 May 2014

BROKEN HEART POETRY

ज़रा स्याही देना एक नाम लिखना है,
उस नाम से जुड़ी दास्तान को लिखना है,
एक रोज़ किसी को चाहा था हमने,
उस चाहत में लुटाए अपने दिल का दाम लिखना है,
बड़ी मोहोब्बत से पिलाया था मीठा ज़ेहर जिसने,
उसकी बाहों में बितायी उस आखरी शाम को लिखना है,
खुश है वो कैसे मेरे बिना,
इस जुदाई में उसकी ख़ुशी का बयान लिखना है,
ज़िन्दगी बीत रही है ग़म के साये में,
कैसे देते हैं हर शाम इम्तेहान लिखना है,
कैसे खेलते हैं खेल बेवफाई का,
उस बेवफा का भी हासिल किया वो मुकाम लिखना है,
की चोट न खाये कोई बेवफाई की यूँ मेरी तरह,
औरों के नाम बस यही पैगाम लिखना है,
ज़रा स्याही देना एक नाम लिखना है,
उस नाम से जुड़ी दास्तान को लिखना है...........
दास्तान को लिखना है…….......

-सिमरन कौर 

Wednesday, 30 April 2014

Broken Heart Poem

चिराग एक नाकाम मोहोब्बत का  जलाये बैठी हुँ ,
मोहोब्बत में उसकी अपना सब कुछ  गवाए बैठी हुँ ,
जिसकी मोहोब्बत में  जलना शौक है मेरा ,
ऐसे शख्स की मोहोब्बत सीने से लगाये बैठी हुँ ,
कहने को तो वो पराया है मुझसे ,
फिर भी एक उसीकी तस्वीर दिल में बसाये बैठी हुँ ,
गर मोहोब्बत से देख ले एक बार आँखों में मेरी,
तो पता चले उसे की कितने एहसास अंदर दबाये बैठी हुँ ,
,गर छू ले भीगी पलकें वो मेरी,
जान जाएगा वो की कितने ख्वाब इनमें सजाये बैठी हुँ ,
अंदाजा नहीं उसे की इस दिल में मोहोब्बत है कितनी,
आखिर मैं भी तो ये बात उससे छिपाए बैठी हुँ ,
हर रात जिसकी मोहोब्बत में उठाती हुँ कलम ,
उसकी स्याही में भी अपने आंसुओं को मिलाये बैठी हुँ ,
लिख सकूँ आज फिर दास्तान-ऐ-मोहोब्बत,
बस इसीलिए रात भर खुद को जगाये बैठी हुँ ,
चलो छोरो कभी ना कभी तो लौट ही आएगा वो,
बस यूँही हर दिन खुदको मनाये बैठी हुँ ,
चिराग उसकी मोहोब्बत में जलाये बैठी हुँ,
एक नाकाम मोहोब्बत में सब कुछ गवाए बैठी हुँ ,
गवाए बैठी हुँ .............

-सिमरन कौर 

Sunday, 27 April 2014

Love Poem

आज प्यार से गले लगा लो मुझको,
पलकों पे एक ख्वाब सा  सजा लो मुझको , 
फिर जुदा  न हो पाउँ तुमसे ,
अपने हाथों कि लकीरों में बसा लो मुझको ,
आज प्यार से गले लगा लो मुझको,

यूँ तो ज़िन्दगी में चाहने वाले बोहत मिलेंगे,
एक चाहत का  सिलसिला ही बना लो मुझको ,
की एक दूसरे में अपना वज़ूद देख लेंगे ,
 इस कदर टूट कर  चाह लो मुझको ,
आज प्यार से गले लगा लो मुझको,

जानती नहीं ये मोहोब्बत क्या  रँग लाएगी ,
कम से कम तब तक ही अपना साथ बना लो मुझको ,
ज़िन्दगी कि राहों में एक साथ चलना चाहूंगी,
इस सफर में अपने साथ बिठा लो मझको ,
आज प्यार से गले लगा लो मुझको,

कभी  बीच राह में छूट ना जाये हाथ तुमसे,
एक ऐसे धागे से बाँध लो मुझको ,
वक़्त कि आंधी भी दूर ना कर पाये तुमसे ,
मुझे चाह कर इतना बतला दो उसको ,
आज प्यार से गले लगा लो मुझको,

पता नहीं यूँ मुलाकात कब हो हमारी ,
मेरे पास रहते ही अपनी हर सांस में बसा लो मुझको,
खुदा भी नाज़ करे देख के चाहत हमारी ,
बस मोहोब्बत से ऐसी मोहोब्बत बना लो मुझको ,
आज प्यार से गले लगा लो मुझको,
पलकों पे एक ख्वाब सा  सजा लो मुझको .......... 

- सिमरन कौर 

Wednesday, 26 March 2014

AZAAD MUJHE BEHNE DO

एक बूँद सी हूँ झरने में मैं ,
कि  आज  मुझे बहने दो,
ठोकर खायी हर किनारे पे  मैंने,
अब आज़ाद मुझे बहने दो,
न मंज़िल पता,
न रास्ता पता,
तोड़ती चलूँ  ये सन्नाटा वादियों का,
बनके गूँज टकराओ की ,
ज़रा ज़ोर से बहने दो,
मुझसे हे बने ये झरने, नदी और सागर,
कभी तूफ़ान न बनू मैं,
धीमी रफ़्तार से बहने दो,
चाहे दिन ढले या हो रात अँधेरी,
चुप चाप दबे पाओ,
बिन आवाज़ मुझे बहने दो,
मुझे बहना है दर्रे-दर्रे (घाटी)  में,
सिमट कर एक धारा  में,
किनारों  को छू जाऊं,
इस कदर मुझे बहने दो,
बना सकू हमराही एक पत्थर को अपना ,
थम कर दो पल पास उसके,
कि दर्द ठोकरों का आज उससे कहने दो,
अनगिनत बूंदों से जो बनता है झरना,
उस झरने में ही बहती एक बूँद हु मैं,
मिल जायेगी मुझे मेरी मंज़िल कहीं किसी  न किसी नदी या सागर में,
तलाशने को बस वो मंज़िल मुझे,
आज़ाद रास्तों में तब तक मुझे बहने दो,
बस तब तलक मुझे बहने दो ...........

-सिमरन कौर   

Tuesday, 18 March 2014

POEM ON HOLI

आयी होली उड़ा गुलाल,
रंगे देखो सबके गाल,
अजब सी देखो आयी बौछार,
खुशियों से होली लायी बहार,
लाल, नीला, हरा, गुलाबी,
प्यार और खुशियां,
इन दो रंगों कि भी लो हाथ में चाबी,
उड़ा लो रंग आसमान में सारे,
कि आसमान भी बरसाए रंगों के फुहारे,
खाओ गुजिया खाओ मिठाई,
बन-ठन  रंगों से होली आयी,
होली में यूँ रंग बरसाओ,
सूखे रंगों से ही  होली मनाओ,
सूखे रंगों कि बी है बात निराली,
बरकरार रहेगी होली कि लाली,
कह  दो ये होली हम यूँ ही मनाएंगे,
नीर बचाकर सूखे रंग ही  बरसाएंगे,
खैर मुबारक हो सबको होली का त्यौहार,
फैलाते रहो सदा खुशियों के रंगों कि फुहार ................ 
खुशियों के रंगों कि फुहार …………………

-सिमरन कौर 

Tuesday, 11 March 2014

SAD LOVE SHAYRI

अब तो दीवारे भी थक चुकी हमारा दर्द सुनते सुनते,
कहती  हैं बस करो, अब हमसे और रोया नहीं जाता .......


लोग हमें बेवजह कहते हैं हमे सजने का शौक है,
उस ही ने कहा था, जब याद आये हमारी आईना देख लेना …………



लोग कहते हैं प्यार किस्मत वालों को मिलता है,
आज पता चला, लोगों ने हमसे कितना झूठ बोला है................


दूर रहना इस मोहोब्बत कि दुनिया से ऐ दोस्त,
ये लोग आते हैं खामोशी से, खामोश करने क लिए...................... 

SAD SHAYRI

तुझसे मोहब्बत करते करते ,
हम तुझमे इस कदर खो गए,
कि आज अपने हे वजूद क टुकरे समेटते ज़िन्दगी गुज़र रही है………



लोग अक्सर हमसे तुम्हारे बारे में पूछा करते हैं,
हम भी हंसकर कहते हैं,
तेरी ज़ात, तेरे किरदार और तुझसे कोई वास्ता नहीं…………  

AB KI SAAWAN RULA GAYA

है सावन भी रो रहा साथ मेरे,
है इन बूंदों में दिए कईं दर्द तेरे,
देखो तो ये सर्द हवा भी कैसे रुला रही है,
आज ये बिजली कि कड़कड़ाहट भी तुझे बुला रही है,
वो बूंदें जिन्हें अक्सर देख हम मुस्कुराया करते थे,
वो बूंदें जिनमें  भीग कर प्यार अपना बतलाया करते थे,
है मंज़र आज पर अजब सा छाया है,
इन बूंदों ने भी शोक मेरी तन्हाई का मनाया है,
ऐ सावन न भीगा यूँ मुझे कि मेरे अश्क इन बूंदों में छुप  जायेंगे,
थम जा दो पल कि वो मेरी भीगी पलकें देख पाएंगे,
गर रो रहा होगा वो भी यूँ बरसात तले कहीं मेरी याद में,
तो छुपा रहा होगा आंसू अपने इन बूंदों कि आड़ में ,
सुकून इस सावन में न उसको भी आया होगा,
है सावन भी रो रहा साथ उसके ,
शायद ख्याल दिल में उसके भी ये कहीं आया होगा,
शायद ख्याल मेरा दिल में उसके भी आया होगा ………… 

- सिमरन कौर 

SAD LOVE POETRY

आज अपने परिवार के लिए,
मैंने अपना प्यार खो दिया,
आज फिर मेरा दिल,
इस बात पर रो दिया,
एक लड़की जिस दिन का इंतज़ार बरसों से करती है ,
जिसके नाम कि मेहँदी उसके हाथ पे रचती है,
अफ़सोस कि जिसका नाम,
 मेरे हाथ पे लिखा है,
ये वो शख्स नहीं,
जिससे मैंने प्यार का मतलब सीखा है,
ये सजावट, ये शोर,
ये दुल्हन का लिबास जो पहना है,
आज किसी और का होकर,
मुझे हर दर्द सहना है,
ये रस्म-ओ-रिवाज कि डोर,
आज  बाँध ली अपनी कलाई से,
लिख लिया उसका नाम अपनी ज़िन्दगी पे,
आंसुओं कि स्याही से,
देख तेरे खातिर कर लिया आज मैंने समझौता है,
करती रही इंतज़ार तेरा ,
पर तू अब तक न लौटा है,
वक़्त गुज़र जाएगा,
और ले जायेगी ये डोली मुझे,
ऐ जान आ जा कि आखरी दफा जी भर के देख लू तुझे,
के देख लू तुझे .............


- सिमरन कौर

Saturday, 22 February 2014

रीत-ऐ-बिदाई

चली रे बाबा अब तेरी गुड़िया चली ,
थाम के हाथ अपने पिया कि गली,
कि रौनकें मेरी अब वहाँ  महकेंगी ,
यहाँ तो अब सदा मेरी यादें चेहकेंगी,
कि अब तो मैं  कभी माँ के दिल में,
या तो बाबा तेरे होंठों पे मुस्कान बन के आऊँगी ,
 ये बाबुल कि गलियों में तो अब मैं  परायी हे कहलाऊंगी,
जानती हूँ कि माँ अक्सर मुझे याद करेगी,
कभी भूल से मेरा नाम भी ले बैठेगी,
फिर याद करेगी कि कल ही  तो उसकी लाडली उसके पास थी ,
जब गोद में सर रख कर सोयी थी,
वो कल हे कि तो रात थी,
जब मेहँदी शगुन कि उसने मेरे हाथों पे लगायी थी,
बेटियों को जो पराया कर  जाए आखिर ये रीत ही क्यों बनायीं थी,
सम्भाल लेना बाबा कि ये सोच माँ कहीं रो न दे,
याद में मेरी खुद को कहीं खो ना दे,
कह के इतना बस माँ को मना लेना,
कुछ खट्टी मीठी यादों से माँ को हँसा देना,
कि फूलों से सजी डोली में जिस बेटी को बिठाया था ,
आखिर बचपन से इस दिन का ख्वाब हमने ही तो सजाया था,
जिन नन्हे क़दमों से तेरी बेटी इस आँगन में थी आयी,
क्या पता था लांघ के ये देहलीज़ मुझे,
निभानी पड़ेगी एक दिन ये रस्म-ऐ-बिदाई,
हो चली अब परायी,
चली रे बाबा अब तेरी गुड़िया चली,
सवार सजी डोली में छोड़ बाबुल कि गली ,
कि रौनकें अब मेरी पिया घर में महकेंगी,
अब तो बस इस आँगन में सदा मेरी यादें चेहकेंगी ……… 
सदा मेरी यादें चेहकेंगी .......  

-सिमरन कौर