खुशियों को खोकर मैंने,
मुस्कुराना सीखा है,
अश्कों को पीकर मैंने,
ग़म भुलाना सीखा है,
कलम और स्याही के सहारे,
दर्द कागज़ पर बहाना सीखा है,
नहीं ये ज़िन्दगी का सफर आसान,
बिना मांझी कश्ती को,
पार लगाना सीखा है,
हारूंगी नहीं अब ज़िन्दगी के आगे,
लाख ठोकरे खाकर भी,
खुद को सम्भालना सीखा है,
दे दे खुदा मुझे ज़ख्म जितने भी,
दर पे खड़े होकर उसके,
मुस्कान को मरहम बनाना सीखा है,
कब तक नही देगा वो खुदा कोई ख़ुशी मुझे,
आखिर हमने भी उसकी हर रज़ा को,
दिल से अपनाना सीखा है,
लाख तकलीफों के साये में रहे हो हम,
गीत मुस्कुराहट का सदा हमने गुनगुनाना सीखा है,
यूँ ही हर ग़म को मिटाना सीखा है...................
यूँ ही हर ग़म को मिटाना सीखा है...................
मिटाना सीखा है...................
-सिमरन कौर